rajput rajpurohit राजपूत राजपुरोहित

🌻🌻''राजपुरोहित'' 🌻🌻
अवश्य पढे : ''राजपुरोहित हिंदू ब्राह्मण जाति में आने वाला एक समुदाय है जो कि ज्यादातर राजस्थानके क्षेत्रों में बसते हैं। असल में राजपुरोहित एक पदवी है जो कि उन ब्राह्मणों को प्रदान की
जाती थीं जो किसी राजा करे राज्य में राज्य का कारभार
सँभालने में अपन योगदान देते थे | राजपुरोहित समुदाय के लोग यह
दावा करते है की उनका मूल भारत वर्ष के महान हृशिकूलों में है |
इसीलिए राजपुरोहितों के गोत्र भी हृशियों के नाम से
निकलते है जिसमे सेवङ जाति सबकास्त है।
राजपुरोहितो की पहचान ‘‘जय श्री रघुनाथ जी,,
जब दो राजपुरोहित मिलते हैं, तो एक-दूसरे का अभिवादन ‘‘ जय
श्री रघुनाथ जी’’ कहकर करते है। इससे मन में यह प्रतिक्रिया
जाग्रत होती है कि जय श्री रघुनाथ जी ही क्यों कहा जाता
है। अतः हमें इसके बारे में कुछ जानकारी अवश्य होनी चाहिए।
स्वर्णयुग में सूर्यवंश में एक महान् प्रतापी चक्रवर्ती सम्राट
महाराज रघु हुए थे । महाराज रघु वैष्णव धर्म के अनुयायी तथा
भगवान विष्णु के परम भक्त थे । महाराज रघु की कीर्ति तीनों
लोकों में व्याप्त थी । महाराज रघु के नाम पर इनके कुल का नाम
रघुकुल भी पड़ा । इस कुल में स्वयं भगवान रामचन्द्र जी ने अवतार
लिया । महाराज रघु द्वारा भगवान विष्णु की घोर अराधना
के आधार पर भगवान श्री हरी विष्णु का एक नाम रघु के नाथ
(रघुनाथ) भी पड़ा । जब हम रघुनाथ का नाम संबोधन में प्रयुक्त
करते हैं तो हम उसी प्राण पुरूषोतम ब्रह्मपरमात्मा सृष्टि के
पालनकर्ता श्री विष्णु की जय घोषण करते है। वैसे सम्बोधन किसी भी प्रकार से किया जा सकता है परन्तु प्रचलन का एक
अलग ही महत्व होता है। इसी कारण आपसे कोई राजपुरोहित
बन्धु ‘‘जय श्री रघुनाथ जी की’’ कहे तो आप तुरन्त समझ जायेगे
कि वह व्यक्ति राजपुरोहित है। यही इसी सम्बोधन में निहित
सार है।
परिचय
राजपुरोहित अर्थात् वह व्यक्ति जो राज कार्य में दक्ष लेता
हो तथा जरुरी या आवश्यक या पुरुषार्थ के कार्य को अथवा
जोश के साथ कर सके जिसमे सभी का हित हो एवं आवश्यकता
पड़ने पर तलवार भी धारण कर लेता है ,राजपुरोहित कहलाता है
"पुरोधसा च मुख्य माँ विदि पार्थ बर्हस्पतिम |"श्री कृष्ण ने
गीता का उपदेश देते हुए अर्जुन को राजपुरोहित की महता
बताते हुए कहा था की हे अर्जुन पुरोहित में देवताओ के बर्हस्पति
मुझे जान " चुकी बर्हस्पति देवताओ के गुरु के गुरु थे और वह
राजपुरोहित थे | पृथ्वी की रचना होने एव देव -उत्पति से लेकर
वर्तमान युग तक राजपुरोहित का स्थान सदा श्रेष्ठ रहा है रजा
का समंध राज से होता है किन्तु उससे भी बढ़कर स्थान
राजपुरोहित का रहा है अत इस श्रेष्ठ कुल में जन्म लेने वाले को
गर्व होना चाहिए की "में राजपुरोहित हु " प्रजापति का
सर्वोस गुरु ही राजपुरोहित होता था तथा दुसरे शब्दों में राज्य
की सम्पूर्ण जिम्मेदारी राजपुरोहित की होती थी | जब
राजा अत्याचारी हो जाता था तब उन्हें पद से मुक्त करने की
जिम्मेदारी भी राजपुरोहित की होती थी|
राजपुरोहित को सिंह की उपाधि और जागीरदारी
आर्यों द्वारा स्थापित वर्ण व्यवस्था के आधार पर सम्पूर्ण
हिन्दू को चार वर्गों में बाटा था - ब्राह्मण,क्षत्रिय,वेश्य एवं
शुद्र। राजपुरोहित समाज ब्राह्मण वर्ग का एक ही अभिन्न
श्रेष्ठ अंग रहा है । ब्राह्मणों में से श्रेष्ठ विद्या धारक को
पुजारी पुरोहित अथवा राजगुरु बनाया जाता था | पारम्परिक
तोर पर राजपुरोहित राजा के गुरु के साथ ही प्रमुख मंत्री
अथवा सलाहकार का दायित्व भी निभाता था ।
राजपुरोहित राजाओ को वेदों के उपनिषदों
धनुविद्या,शिक्षा एवं युद्ध कला की जानकारी देते थे |
कालांतर में राजपुरोहितो ने राजाओ को युद्ध में कन्धा
मिलाकर साथ दिया,परिणाम स्वरूप इन्हें नाम के आगे "सिंह"
शब्द से संबोधित किया जाने लगा | अपने युद्ध के पराक्रम एवं
कोशल के कारण इनको राजाओ की और से डोली(किसी गाव
की उपजाऊ जमीन) तथा शासन गाव(किसी गाव विशेष को
लगन मुक्त) उपहार स्वरूप भेट किया जाता है |इसी कारण
माध्ययुग में राजपुरोहितो को जागीरदार कहलाने लगे |
बिर्टिश राज में कहते थे कि कभी सूर्यअस्त नही होता था |
वहा से आदेश जारी हुआ तथा भारत के लार्ड को पूछा गया की
हिन्दुस्थान में राजपूत ही क्यों "राज" करते है तब यहा के लार्ड ने
जबाव भिजवाया की राजपूतो के "राजपूत" राजपुरोहित होते है
|तथा राजपुरोहित इतने वफादार होते है की राजपूतो को "राह"
से भटकने नही देते है | इस पर पुन: आदेश हुआ की यदि ऐसा ही है तो राजपुरोहित को "जागीरदार" बना दो। शने-शने इनका ध्यान राजविद्या से हटकर कास्तकारी की और बढ़ गया था। राजा से सम्पर्क कम होने लगा |जिसके कारण राजा -महाराजा भोग विलासी बन बेठे एवं विदेशी लोगो ने आकर यह आधिपत्य स्थापित कर लिया |चुकी मध्ययुग की समाप्ति एवं राजाशाही शासन के अंत के बाद भारत वर्ष में लोकतंत् स्थापित हुआ।
 जय श्री रघुनाथ जी सा
Kbs राजपुरोहित

सुरेश राजपुरोहित ईटवाया

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