एससी एसटी एक्ट पर , राजपूत, ब्राह्ण, वैश्य याकि ओबीसी-फारवर्ड जातियां की सरकार को ललकार, सरकार एक्ट हटाए या खुद हट जाए

एससी एसटी एक्ट पर समाज की सरकार को ललकार, सरकार एक्ट हटाए या खुद हट जाए

राम मंदिर का मामला न्यायपालिका में विचाराधीन है
यह मामला भी न्यायपालिका में विचाराधीन था। राम मंदिर मामले की तरह एक्ट के मामले में भी कुछ दिन तसल्ली क्यों नहीं की गई। या फिर धारा 370 और राम मंदिर मामले और देश की आचार संहिता में भी परिवर्तन क्यों नहीं किया जा रहा। क्योंकि राम मंदिर मामले के सवर्णों का वोट फिक्स हैं और एससीएसटी एक्ट का वोट फिक्स नहीं है, जिसे 2019 के चुनाव के लिए सरकार को अपने खाते में करना था। वोट की राजनीति के लिए हिन्दुत्व की बात करने वाली सरकार भाईयों के बीच खाई पैदा कर देश को बांटने का काम कर रही है।

नरेंद्र मोदी सरकार का ताजा फैसला जातियों में घाव हरे करने वाला है। हिसाब से मोदी सरकार को अदालत में जा कर बताना था कि क्यों दलित कानून में गाली की शिकायत करने पर जेल भेजना जायज है लेकिन अदालत के फैसले को अदालत में खारिज करवाने के बजाय वह खुद संसद में अब नया कानून बनवा दे रही है। ऐसा कानून जिससे हिंदुओं की गैर-दलित तमाम जातियों पिछड़ों, राजपूत, ब्राह्ण, वैश्य याकि ओबीसी-फारवर्ड जातियां हमेशा खौफ में रहे। उन्हे जब चाहे, गाली बोलने की बात पर जेल में डलवा दिया जाए।



मांग पूरी ना होने पर चुनाव में दिखेगा असर


एससीएसटी एक्ट के मामले में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का आदेश पलट कर लोकतंत्र पर कील ठोकने का काम किया है। क्योकी
06 सितंबर  का प्रदर्शन सिर्फ मिनी ट्रेलर होगा।
 मांग पूरी न होने पर 2019 के चुनाव में इसका असर अवश्य नजर आएगा।
 न्यायालय से हमें अब भी उम्मीद है।
 अब पानी सिर से ऊपर गुजर गया है। हमारी लड़ाई सरकार के खिलाफ नहीं बल्कि देश को बांटने वाले काले कानून के खिलाफ है।

 सरकार यह सोच ले कि यदि एक्ट से पीड़ित 78 फीसदी लोग यदि सड़कों पर उतर आए तो क्या होगा। अपनी मांग के लिए क्या हमें भी अराजक बनना पड़ेगा? इस एक्ट को दोबारा लागू कर सरकार ने अखंड भारत की परिभाषा को तार-तार कर दिया है।


अगर  जाती  सुचक शब्द गलत  हैं । सरकार कयो करती हैं ।


(१) जाति के आधार पर आपराधिक विधि बनाकर दण्ड का निर्धारण करना। अनुच्छेद 14 का अतिक्रमण है। अनुच्छेद 14 की आरक्षण पहले ही हत्या कर चुका है। अब SCST एक्ट के द्वारा समानता का दफन कर अंतिम संस्कार कर दिया गया है। जब समानता नहीं तो सम+विधान= संविधान की अवधारणा ही खत्म हो जाती है।
(२) जब सरकार जाति का प्रमाणपत्र जारी करती है तब जाति सूचक शब्द का उच्चारण अपराध कैसे हो जाता है? या तो फिर संविधान में लिखी हर बात का उच्चारण अपराध होना चाहिए यदि नहीं तो अनुसूची में वर्णित जातियों का ही क्यों? और यदि ये शब्द इतने ही आपत्ति जनक हैं तो इन्हें संविधान में सम्मिलित ही क्यों किया गया?

(3) SCST एक्ट 3 (1)(v) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन करती है। कालेज के प्रोफेसर या पत्रकार किसी दलित चिंतक की समालोचना नहीं कर सकते। यह अज्ञान व तानाशाही का पोषक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को खत्म करने वाला एक्ट है।
यह दलित आतंक और तानाशाही है जिसका शिकार कालेज प्रोफेसरों को बनाया जा रहा है।

(४) भारतीय समाज में दण्ड की परम्परा पहले सामाजिक बहिष्कार के रूप में थी। चूंकि लम्बी गुलामी, विदेशी आक्रमणकारी मुगलों और अंग्रेजों के शासनकाल में भारतीय परम्परागत न्याय पँचायतें कानूनन खत्म की गयी जिस कारण समाज के उस वर्ग की सजा समाज व्यवस्था के अनुसार उन्मोचित नहीं हो पायी। और इस संदर्भ में बदली हुई न्यायिक व प्रशासनिक व्यवस्था में मुगलों और अंग्रेजों के द्वारा हिन्दुओं के इन वर्गों को ही इनके मूल समाज के विरुद्ध प्रश्रय दिया गया और इनके पक्ष में दण्डात्मक प्राविधान किये गये। लेकिन अब देश में विभेद के मूल आधार अश्पृश्यता का अपवाद को छोड़कर पूर्ण उन्मूलन हो चुका है तब ScSt एक्ट की क्या जरूरत है। यदि अस्पृश्यता ही आधार है तो सरकार बताये कि छुवाछुत के कितने मुकदमें lPC में दर्ज हुए और उनको कितनी सजा हुई?

६) इस एक्ट का धर्मान्तरित लोग सर्वाधिक लाभ उठा रहे हैं। क्योंकि जाति व्यवस्था या कथित विभेद सिर्फ हिन्दुओं में है तब ईसाई अथवा मुसलमान बन चुका व्यक्ति इस अधिनियम के अन्तर्गत अनुसूचित कैसे कहला सकता है? जबकि वर्तमान में धर्मान्तरित व्यक्ति ही हिन्दू सवर्णों के खिलाफ मिशनरियों और जेहादियों के बहकावे में सर्वाधिक फर्जी मुकदमे कर निर्दोष ब्राह्मणों और सवर्णों का उत्पीड़न कर रहे हैं! क्योंकि हिन्दू धर्म नष्ट करना उनका लक्ष्य है।


७) वर्तमान में SCST एक्ट सवर्णों और ब्राह्मणों को पीड़ित करने का एक प्रबल हथियार बन गया है जिसका हिन्दू धर्म विरोधी शक्तियां खासकर जेहादी और ईसाई मिशनरियां कथित दलितों को दुष्प्रेरित कर रही हैं।


(८) SCST एक्ट कथित अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों में पृथकतावादी विचारों का सृजन व पोषण कर रहा है जो सामाजिक एकता के लिए जहर बन गया है और समाज इस एक्ट से लगातार विषाक्त होता जा रहा है। यह एक्ट अपराधियों के हाथ का हथियार और उनका सुरक्षा कवच बन गया है जिससे आये दिन निर्दोषों का शिकार हो रहा है और दोषियों की उदण्डता बढ़ती जा रही है, जिस कारण बहुसंख्यक वर्ग का जीना दुश्वार हो गया है।

(९) यह एक्ट अपराधियों का सुरक्षित पनाहगार बन गया है। इस एक्ट की आड़ में बन्द, धरना, तोड़ फोड़, आगजनी, वसूली, उठाई गिरी और ब्लैकमेलिंग हो रही है।


(१०) झूठी शिकायत होने पर भी इस एक्ट के अंतर्गत शिकायतकर्ता को मुआवजे के रूप में भारी रकम दी जाती है जो कि टैक्सपेयर के पैसे का दुरुपयोग और भारी वित्तीय अनियमितता है।

(११) यह एक्ट बलात्कार के अपराध में भी विभेद करता है। कथित दलित महिला को मेडिकल से छूट होने के कारण अगर कोई महिला शाजिसन किसी समान्यवर्ग के व्यक्ति पर आरोप लगा दे तो वह व्यक्ति निर्दोष होते हुए भी दण्डित हो जायेगा। यह एक्ट न्याय के मौलिक सिद्धांतों और प्राकृतिक न्याय के विपरीत है। बलात्कार जैसे जघन्य अपराध में प्रिविलेज का क्या नैतिक और वैधानिक आधार है?

(१२) आपराधिक दण्ड में केवल SCST के व्यक्ति को मुआवजे का आधार क्या है? क्या यह संविधान के अनुकूल है! सरकार टैक्सपेयर के पैसे का विभेदकारी उपयोग या दुरुपयोग कैसे कर सकती है? जबकि मुआवजे का सर्वाधिक लाभ धर्मान्तरित और उच्च आयवर्ग वाले ऐसे लोग उठा रहे हैं। जिन्हें अन्यथा मुआवजे की जरूरत ही नहीं है और यह एक्ट उनकी कमाई का साधन बन गया है।

 (१३) यह एक्ट प्राथमिक रिपोर्ट दर्ज करवाने पर ही मुआवजे की व्यवस्था करता है, इसलिए धन के लोभ में न केवल अवैध कमाई का साधन बन गया है बल्कि इससे झूठे मुकदमों की बाढ़ आगयी है और कमाई के लिए कथित दलित जबरदस्ती मुकदमें दर्ज करवाने के लिए थानों में डेरा डालना, धरना देना, चक्का जाम करना, मीडिया में प्रोपेगैंडा और तमाशा कर रोजमर्रा के जनजीवन को बंधक बना दे रहे हैं।

(१३) इस एक्ट का अपवाद को छोड़कर शिकार सिर्फ निर्दोष सवर्ण हिन्दू बन रहा है। और प्रकारान्त से सनातनधर्म और सवर्ण को नष्ट करना इस एक्ट का लक्ष्य बन गया है। जनमानस की यह अवधारणा न्याय पर आस्था और विश्वास की मौलिक अवधारणा के विपरीत है। ऐसे विभेदकारी कानून होंगे तो लोगों का न्याय व न्यायालय से विश्वास खत्म होगा जैसा कि पूर्व में बिहार के भूमिहारों ने भीषण नर संहार कर के ऐसे विभेदकारी कानूनों का विरोध किया था।

 (१४) SCST एक्ट को एक हथियार के रूप में प्रयोग कर कथित दलित दबंग संवैधानिक संस्थाओं और मर्यादाओं का अतिक्रमण कर रहे हैं। जिसको रोक पाने में सारे कानून विफल हो गये हैं।

१५) SCST एक्ट की आड़ में मनुस्मृति जलाना, समान्यवर्ग के विरुद्ध विष बमन, मान मर्दन, झूठ एवं समाज में फूट, विद्वेष एवं प्रपंचपूर्ण साहित्य का प्रकाशन के साथ सनातनधर्म को अपमानित करने के लिए महिषासुर पूजन आदि समाज विरोधी जबरदस्ती भड़काने वाले कार्य करना। सवर्णों की बहू बेटियों को उठाना, छेड़ना, मंदिरों में मूर्तियों को तोड़ना, भगवान राम व कृष्ण के चित्रों पर जूते मारने के लिए सार्वजनिक स्थानों पर उत्सवों का आयोजन करना। ब्राह्मणों को हर तरह से बेईज्जत कर उनका मान मर्दन करने का कार्य हो रहा है।

 (१६) महोदय आपराधिक विधि में एक्ट प्रोटक्शन के लिए होता है लेकिन यह एक्ट चोर दरवाजे से प्रिविलेज देता है। जो कि असंवैधानिक है। जिसका कोई नैतिक या वैधानिक आधार भी नहीं हो सकता है। केवल वोट बैंक के लिए कानून का दुरुपयोग मात्र है। कोई भी सभ्य सरकार वोट के लिए निर्दोष नागरिकों की बलि नहीं दे सकती जो इस एक्ट के द्वारा दी जा रही है।

(१७) इस एक्ट का उपयोग राजनीतिक प्रतिद्वंदिता, सामाजिक विद्वेष और निजी खुन्नस निकालने के लिए वे लोग कर रहे हैं जिनके पास जाति का प्रमाणपत्र है और जो सामाजिक, आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न और पद प्रतिष्ठा वाले सक्षम हैं। जिस तबके को दलित आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाता है उसको इस एक्ट से कोई लेनादेना भी नहीं है वह अपनी मेहनत मजदूरी कर अपना गुजारा करता है। इस एक्ट से सम्बंधित सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के विरोध में भी वो लोग आये हैं, जिन पर अतीत में देशद्रोह के आरोप लगे हैं और जिनके विरुद्ध अनेक न्यायालयों में अलग अलग अपराधों में मुकदमें चल रहे हैं। समाजद्रोही, देशद्रोही ऐसे लोगों के आंदोलनों की फन्डिंग का विदेशों से होने का अंदेशा भी सुरक्षा एजेंसियां लगा चुकी हैं। इसप्रकार यह एक्ट देशद्रोहियों का भी सुरक्षा कवच बनता जा रहा है।


(१८) यह एक्ट समाज में फिरकापरस्ती पैदा करता है और संविधान की प्रस्तावना के पहले वाक्य- "हम भारत के लोग" के विरुद्ध है।

(१९) यह एक्ट सामाजिक न्याय और सोसियल इंजीनियरिंग के नाम पर विद्वेष और अन्याय उतपन्न कर आपस में काल्पनिक अभाव व शोषण की मान्यताओं को गढ़ता और पुष्ट करता है जोकि सामाजिक समरसता में बाधक है।

 (२०) यह एक्ट अपराध से पहले ही जाति और समुदाय को अपराधी घोषित कर देता है। क्योंकि यह SC/ST पर लागू नहीं होता। अगर वही व्यक्ति एक्ट में वर्णित अपराध करे तो अपराध नहीं है। दूसरा करे तो अपराध है क्या भारत में संविधान की यही व्याख्या है?



 (२१) आजादी के 42 साल बाद सरकार को यह एक्ट क्यों बनाना पड़ा? क्या जिन बातों को यह एक्ट SC/ST के विरुद्ध अपराध मानता है वह गैर SCST के लिए अपराध नहीं होता? यदि होता है तो क्या सरकार को ऐसा विभेदकारी कानून बनाने का अधिकार है? यह एक्ट संविधान की मूल भावना के विपरीत होने के कारण निरस्त करने योग्य है।

(२२) सरकार ने कथित वोट बैंक और कथित जाति के ठेकेदार दलित नेताओं के दबाव में यह एक्ट बनाया है जो कि सांसदों की "भय एवं पक्षपात के बिना अपने कर्तव्यों का निर्वहन करूँगा"! शपथ का उलंघन है। इसके लिए समस्त सांसदों की सदस्यता की निरस्त कर इनकी पेंशन और सारी सुविधाओं को खत्म किये जाने व इनको सदस्यता के अयोग्य घोषित किये जाने की मांग है। ज्ञातव्य है कि- भारत में कार्यपालिका विधायिका के अधीन है और न्यायपालिका के फ़ैसले संसद बदल देती है! जिससे सरकार तानाशाह बन जाती है। वास्तव में देखा जाय तो भारत में लोकतन्त्र लुप्त होकर संवैधानिक तानाशाही में तब्दील हो जाता है। ऐसे में न्याय का आखरी बचा खुचा सहारा जनता के पास न्यायालय ही रह जाता है।

(२३) महोदय वर्तमान विश्व में सबसे बड़े अपराधी आतंकी हैं, जब संविधान आतंकियों को किसी धर्म या सम्प्रदाय विशेष का नहीं मानता है तो गैर SC/ST को अपराधी मानकर SCST एक्ट कैसे बना सकती है? हम सभ्य देश के सभ्य कानून में जी रहे हैं क्या? यह बहुत बड़ा सवाल है। (२४) कथित दलितों द्वारा अपने उच्चाधिकारियों पर आरोप लगाना, काम न करना, मुफ्तखोरी, अनुशासनहीनता, उतशृंखलता को बढ़ावा देकर, गैर SCST की अस्मिता, परिवार बाल बच्चों की अस्मिता को खतरे में डाल दिया है जिससे ऐसी शर्मनाक घटनाएं सामने आ रही हैं कि लोग अपनी इज्जत की खातिर घोर अत्याचार सहने को विवश हैं।

(२५) जिन लोगों का नारा ही "तिलक तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार है"! ऐसे लोग अब इस एक्ट की आड़ में अब रोटी बेटी के नाम पर सवर्णों की बहू बेटियों के साथ आये दिन छेड़खानी कर रहे हैं। जिसके विरुद्ध scst एक्ट की डर से लोग थाने में भी शिकायत नहीं कर पा रहे हैं जिससे लोगों का जीना दुश्वार हो चुका है। इस प्रकार इस एक्ट ने गैर SCST की जीने की स्वतंत्रता का अपहरण कर लिया है। (२६) यह एक्ट काल्पनिक अपराध को प्रश्रय देता है और इस आधार पर भी गैर SCST को दण्डित करता है। उदाहरण के लिए हवा में कूड़ा उड़ गया तो आरोप में किसी भी सवर्ण के विरुद्ध मुकदमा लिखाया जा सकता है।

 (२७) यह एक्ट मानव अधिकारों के विरुद्ध है जैसा कि काशीनाथ वाले मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने माना है। इसलिए असंवैधानिक और असभ्य है। (२८) यह एक्ट एक वर्ग विशेष की तानाशाही और आतंक को पोषित प्रोत्साहित और संरक्षित करता है। (२९) जो लोग अपना फेडरेशन ऑफ चैंबर्स एंड कामर्स चला रहे हैं और चार-चार पीढ़ियों से जज, अफसर, मंत्री, राज्यपाल, राष्ट्रपति आदि समाज के उच्चतर पदों पर आसीन लोगों के साथ कोई गैर SCST आज भी विभेद कर रहा है क्या? सरकार के पास इस बात का कोई आंकड़ा है? यदि नहीं तो इस एक्ट का दुरुपयोग करने के लिए सर्वाधिक इसी वर्ग के लोग दुष्प्रेरित कर रहे हैं। फिर इनको इस एक्ट का लाभ क्यों दिया जा रहा है?

 (२९) चूँकि यह एक्ट समुदाय विशेष को टारगेट करता है इसलिए इस एक्ट से समाज में आपसी विद्वेष, वैमनश्यता, हिंसक झड़प औऱ गृहयुद्ध तक हो सकता है! क्योंकि देश विरोधी शक्तियाँ, खासकर जेहादी ग्रुप हिंन्दुस्तान में कथित भीमसेना जैसे देशद्रोही संगठनों को मदद कर रहे हैं जो देश के अस्तित्व के लिए बहुत बड़ा खतरा है।

 (३१) SCST एक्ट भारतीय साक्ष्य अधिनियम का भी अतिक्रमण करता है जिस कारण यह निर्दोष को भी अपराधी घोषित कर वर्ग विशेष के मुफ्तखोरों की कमाई का साधन बन गया है।

(३२) अपराध पर वर्ग विशेष के कथित पीड़ित के लिए मुआवजे का औचित्य क्या है? आम आदमी के लिए क्यों नहीं है? इस विवेक का आधार क्या है? सामाजिक क्षतिपूर्ति के लिए टैक्सपेयर के पैसे की बंदरबांट का औचित्य समझ से परे है। इसलिए भी यह एक्ट खत्म करने योग्य है।

 (३३) संविधान कहता है बिना जाँच गिरफ़दारी नहीं होगी, एक्ट कहता है, गिरफ़दार कर जेल डाल दो जांच 6 महीने बाद भी होती रहेगी! अतएव न्यायालय से निवेदन है कि इस एक्ट को निरस्त किया जाय तथा जो मुकदमें चल रहे हैं उनकी सुनवाई प्रचलित IPC के अंतर्गत की जाय औऱ अन्यथा धाराओं को निरस्त कर मामलों के निस्तारण हेतु आदेश पारित करने की कृपा करे

सुरेश राजपुरोहित ईटवाया

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