वीर गाथा फतेहसिंहजी राजपुरोहित गजाणी साँथू

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वीर श्री फतेहसिंहजी राजपुरोहित (गजाणी) #साँथू
राजस्थान के #जालोर जिले से 25 किमी. पर स्थित स्वर्ण नगरी "साँथू" की पावन भूमि पर कई वीरो और सतीयो ने जन्म लिया है ।
आज आपको गाथा सुनाते श्री फतेहसिंह जी की
फतेहसिंह जी बहुत साहसी और शक़्तिशाली व्यक़्ति थे । वे घुडसवारी एवं शस्त्र विद्या मे निपुण थे । उनके पिताजी का नाम गजसिंह जी था (गजसिंह जी परिवार "#गजाणी" नक/उपनाम से जाना जाता है) । फतेहसिंहजी का विवाह भादल्डा मे हुआ और उनके तीन पुत्र थे ।


फतेहसिंहजी की शुरवीरता की ख्याती आस-पास के गॉवो मे फैली थी । उस समय मेणा डाकू का गीरोह था जो लुटपाट और आतँक के कारण कुख्यात हो गया था । उसको स्वयं की शक़्ति पर बहुत घमंड था । इसी तरह एक स्थान पर लुटपाट करते समय, उसे एक व्यक़्ति ने चुनौती दी , की यदी तू स्वयं को इतना ही शक़्तिशाली समझता है तो साँथू के फतेहसिंह जी गजाणी को लुटकर दिखा ।
मेणा डाकु को ये अपने अहंकार पर चोट लगी और कुछ ही दिनो बाद, उसने अपने गिरोह के साथ, फतेहसिंहजी के खेत पर आक्रमण करके ऊनकी गाये ले जाने लगा ।
सुचना पाते ही फतेहसिंहजी वहा पहुँचे और गौ-धन रक्षार्थ, अकेले ही उनसे भयंकर युद्ध करके, मेणा डाकु को उसके गीरोह समेत समाप़्त कर दिया । एक ही वार मे मेणा डाकु का सिर, धड से अलग कर दिया ।
गीरोह के दो-चार सदस्य अपनी जान बचाकर भाग गए । वे गॉव देलदरी के काबावत राजपुतो के पास पहुँचे एवं उन्हे सारी घटणा सुनाई (मेणा डाकु को देलदरी के काबावत राजपुतो से संरक्षण/समर्थन प्राप़्त था) ।
ईस घटणा के कारण उन्होने फतेहसिंह जी से बदला लेने का निर्णय कीया ।
#देलदरी के 25-30 काबावत राजपुतो और मीणा ने फतेहसिंह जी के बाडे (फारम), जो की साँथू गॉव से थोडी दूरी पर स्थीत है, वहा उनको अकेला देखकर युद्ध के लिए ललकारा ।
फतेहसिंह जी 60 वर्ष की उम्र के थे , पर उनके शरीर, तेज, शौर्य और बल से वे जवानो को भी मात देने जैसे लगते थे ।
फतेहसिंह जी ने चुनौती को स्वीकार करके अकेले ही उनसे युद्ध करने लगे । शुरवीर श्री फतेहसिंह जी राजपुरोहित ने घोडे पर सवार होकर आक्रमणकारीयो का संहार शुरु कर दीया और देखते ही देखते , उनको मार गीराया ।
आखीर मे केवल 3 आक्रमणकारी बचे । उन्होने जीतने की सम्भावना ना देखकर फतेहसिंह जी को छल से मारने का निर्णय कीया । उनमे से एक झाडीयो मे छुप गया और बाकी दो बोले की 'ऐसे लडकर मरने से कीसी का भला नही होगा, इसलिए हम "राजीपा" (समझौता) , कर लेते है' ।
भोले मन के फतेहसिंह जी उनकी बातो को सत्य मानकर, खेजडी के निचे हथाई करने के लिए बैठे , तभी तीसरे ने खेजडी के पीछे से, बैठे हुए फतेहसिंह जी की पीठ मे भाले से प्रहार कीया ।
घायल फतेहसिंह जी उनसे पुनः युद्ध करने लगे । उस समय उनका बैल , उनकी पगडी को अपने सींग पर लेकर गॉव की तरफ भागा और उनके पुत्रो के समक्ष उनकी पगडी को ले गया । अनहोनी का आभास होते देख उनके पुत्र फारम मे पहुँचे ।
घायल फतेहसिंहजी को बैलगाडी पर गॉव मे लेकर जाने लगे । उन्होने अपनी पुरी गाथा, अपने पुत्रो और साथ आए कुछ लोगो को सुनाई । मार्ग मे गजाणी परिवार के कुलदेव , श्री निलकँठ महादेव के मन्दिर मार्ग के नाके पर बैलगाडी को रोकने का आदेश दीया और शिवलिंग को पानी छडाकर वो पानी लाने को कहा ।
शिवलिंग को छडाया पानी पिकर, थोडा पानी अपने हाथ मे लिया और अपने कुल एवं परिवार के लोगो को देलदरी गॉव से "#गादोतरा" (वहा का अन्न/जल भी ना छुना) रखने की बात कही - "देलदरी के काबावत राजपुतो ने अपने सच्चे राजपुति क्षत्रिय कुल का अपमान कीया है । युद्ध मे एक ब्राह्मण पुत्र पर धोखे से प्रहार करके दगा कीया है और क्षत्रिय वंश को दाग लगाया । ऐसे दगा करके वार करनेवालो को मै कभी क्षमा नही करुँगा और मेरे कुल/परिवार को आदेश देता हूँ, की वे गॉव देलदरी से कोई नाता/व्यवहार ना रखे और मै 'गादोतरा' की घोषणा करता हूँ ।
      जय नीलकँठ महादेव " 
अंत मे कुलदेवता श्री नीलकँठ महादेव का नाम लेकर अपनी देह त्याग दी । (भाद्रपद की शुक्ल पक्ष (अजवाली) नवमी (9) तिथी संवंत् 1861) ।
वीर फतेहसिंह जी के दो स्थान पर छोटे मन्दिर बनाए गए है । एक फार्म मे, जहा युद्ध मे धोखे से भाला मारा गया ,,, एवं दुसरा श्री नीलकँठ मंदिर के मार्ग पर, जहाँ वीर ने देहत्यागी थी ।
गॉव एवं परिवार के लोग ऊन्हे "जीसा जी" नाम से पुजते है । जीसाजी द्वारा आदेशीत गादोतरा का आज भी कट्टरता से पालन हो रहा है । हर वर्ष भाद्रपद की नवमी (9) तिथी को फार्म मे मेला लगता है ।
श्री वीर फतेहसिंह जी राजपुरोहित , राजस्थान सरकार द्वारा , "राजस्थान के लोकदेवता" पुस्तक की सुची मे स-सम्मान सम्मिलीत है ।

सुरेश राजपुरोहित ईटवाया

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