ब्रह्मधाम आसोतरा के गादीपति संत श्री तुलछारामजी महाराज ने कहा कि समाज में रहने वाले प्रत्येक दपंती अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा के साथ-साथ अच्छे संस्कार देना जरूरी है। शिक्षा उसे अच्छा रोजगार दे सकती है, जिससे उसमें धन कमाने की लालसा बढ़ने से वह परिवार और अपनी मातृभूमि के साथ अपनों का प्रेम पाने से दूर चला जाता है, लेकिन अगर मां-बाप परवरिश के दौरान घर का वातावरण अच्छा रखे तो उसमें प्रेम करूणा के संस्कारों का बीजारोपण करे तो वह दूर रहते हुए भी मन से परिवार के साथ जुड़ा रह सकता है।
वे शुक्रवार को खेतेश्वर राजपुरोहित समाज के छठे वार्षिक उत्सव के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। इस मौके महामंडेलश्वर संत श्री निर्मलदासजी महाराज ने कहा कि मोबाइल के अत्यधिक प्रयोग से व्यक्ति इतना व्यस्त हो गया है कि वह जीवन के मूल उद्देश्य हरिनाम सुमिरन को छोड़कर सारे ही दिन व्यापार और फालतू की बातों में उलझा रहता है। इस दौरान संत बालकदास महाराज ने भी धर्मसभा में अपने विचार व्यक्त किए। इससे पूर्व आगंतुक सभी गुरु भगवंतों का संस्थान अध्यक्ष गोरधनसिंहजी राजपुरोहित ने स्वागत किया। इस दौरान आगामी वर्षगांठ समारोह में महाप्रसादी के लाभार्थी शंकरसिहजी दोरनडी का भी साफा बांधकर स्वागत किया। इस मौके पर संस्थान अध्यक्ष गोरधनसिंहजी सुरायता,रामसिंहजी चाडवास, जगदीशसिंह धुरासनी, पुखसिंहजी सुरायता, सज्जनसिहजी रूपावास,का भी बहुमान किया गया। इस दौरान अधिवक्ता मोतीसिंहजी राजपुरोहित,किशोरसिंहजी रूपावास, पूर्व सरपंच रामसिंहजी राजपुरोहित, मोतीसिंह रामासनी बाला, महावीरसिंह रूपावास,पूनमसिंहजी मंडला, सहदेवसिंहजी रूपावास, कन्हैयालालजी शर्मा,जब्बरसिंहजी चाडवास, हीरसिंहजी चाडवास, मोतीसिंहजी उदेश आदि मौजूद थे। संचालन अमरसिंह चाडवास ने किया।
गाजों-बाजों के साथ चढ़ाई ध्वजा, भोजनशाला का हुआ उदघाटन
इस मांगलिक अवसर पर राजपुरोहित समाजबंधुओं की उपस्थिति में समारोह का शुभारंभ संत श्री तुलछारामजी महाराज,निर्मलदासजी महाराज व बालकदासजी महाराज के सान्निध्य में संत श्री खेतेश्वर महाराज की मंगल मूर्ति की पूजा-अर्चना की गई। इसके बाद में गाजों-बाजों के साथ अभिजित मुहूर्त में मंदिर शिखर पर ध्वजारोहण किया गया। इसके बाद गुरु भगवंतों द्वारा समाज भवन में नवनिर्मित भोजनशाला का उदघाटन किया गया। तत्पश्चात धर्म सम्मेलन में दानदाता व बोलियों के लाभार्थी परिवार के भीमसिंहजी धुरासनी, किशनसिंहजी चाडवास, विजयसिंहजी सुरायता, सवाईसिंह जी झूपेलाव, रूपसिंहजी रूपावास, माधोसिंहजी रूपावास, भंवरसिंहजी सेवड़, अमरसिंहजी दोरनडी, शंकरसिहजी धागडवास, गंगासिंहजी धुरासनी, कानसिंहजी रूपावास का भी स्वागत किया गया


