तोलियासर राजपुरोहित शोर्य एवं स्वाभिमान के प्रतीक

विक्रम सम्वत् 1522 आसोज सुदी दशमी में विक्रम जी राजपुरोहित ओर राव बिका ने जांगल प्रदेश की ओर परस्थान किया , पहले देशनोक ओर फिर कुछ समय कोडमदेसर में बिताने के बाद  राव बिका जी ओर विक्रम जी राजपुरोहित जी ने राती घाटी नामक स्थान पर वेशाख सुदी २ ( बीज ) वार शनिवार विक्रम सम्वत् 1545 को बीकानेर राज्य की स्थापना की इसी बाबत एक दोहा प्रसिद्ध है।                                                                                                                                          

“बिको ही पुरोहित बिको ही राव, साज्यों बेऊँ साथ 
धरखाटी जांगल धरा माता करणी माथ ॥

विक्रम सम्वत् 1545 में ही विक्रम जी राजपुरोहित को “ रीडी-बिग्गा” क्षेत्र के चौरासी गाँव परदान किए गये , तात्पश्च्यात विक्रम जी राजपुरोहित जी ने अपने जेष्ठ पुत्र वीर देवीदास जी को बीकानेर राज्य के राज काज में सहयोग हेतु बुलाया। वीर देवीदास जी अपने साथ बड़ली से  भैरूँजी की मूर्ति लेकर आए थे जो की वर्तमान स्थित जगह पर मूर्ति गिर जाने के कारण वीर देवीदास जी ने यही मन्दिर की स्थापना कर तोलियासर में ही रहने का निश्चय किया ओर वीर देवीदास जी सात भाई थे। (1) वीर देवीदास जी गाँव तोलियासर , (2) भैरुदास जी गाँव रणधीसर , बिदासर, खुडी, जोरावरपुरा ।(3) तारोज़ी को गाँव नोसरिया (4) महोदास जी को गाँव कोलासर (5) सेवोजी गाँव राजियासर , रतासर, करडु । लखो जी ओर सुरजो जी के बारे में कोई एतिहासिक तथ्य उपलब्ध नहीं है । वीर देवीदास जी के सात पुत्र किशनदास जी, श्रीराम जी, भोजराज जी, हरिराम जी, मूकनदास जी, मूलराज जी, तथा रतनदास जी थे। किशनदास जी ने किशनासार बसाया , शेष भाइयों के परिवार आज भी तोलियासर में रहते है। ओर किशनदास जी के भी एक वंशज आज भी तोलियासर में रहते है , ओर बीकानेर के सभी सेवड. राजपुरोहितो की बड़ेर तोलियासर आज भी इन सभी गाँवो के हर छोटे बड़े कार्यों की रूपरेखा तोलियासर में तय होती है। 

🚩 वीर देवीदास जी    🚩

देवीदास जी एक वीर योद्धा थे , जो बीकानेर के राजा राव लुणकर्ण की तरफ़ से नारनोल के नवाब आबीमीरा के साथ युद्ध करते हुए सावन बदी चोथ विक्रम सम्वत् 1583 में ढोसी गाँव में वीरगती को प्राप्त हुए वीर देवीदास जी का सर कटने के उपरांत भी घंटो लड़ते रहे , उनका ताज-मोलिया नो दिन बाद गाँव तोलियासर पहुँचा इस लिए आज भी गाँव में किसी मृत्यु होने पर नोवें दिन परम्परा निभाकर उनको याद किया जाता है , वीर देवीदास जी ने बचपन में अरना-झरना से लोटते समय बाघ का सामना होने पर उसे मोत के घाट उतारा था इस लिए एक दोहा प्रचलित है ।

“ बरस पनरे री वयं में , राजपुरोहित देवीदास ”                                   बडली में मारीयो बाघ ने , करियों बीर प्रकाश                                        छोटी वयं रो छोरियों , देवीदास देसोत                                              बकरा ज्यूँ मारयो बाघ , राजपुरोहित राज़ोत ।

सुरेश राजपुरोहित ईटवाया

Previous Post Next Post