परम श्रद्धेय श्री श्री 1008 श्री रूपदास जी महाराज जी जीवन दर्शन

परम श्रद्धेय श्री श्री 1008 श्री रूपदास जी महाराज जी जीवन दर्शन 

रामानुजाचार्य सनातन सम्प्रदाय के गुरूदेव भगवान श्री श्री 1008 श्री रूपदास जी महाराज बाल ब्रह्मचारी थे ओटवाला ( जिला- जालोर ) में माता श्री चुन्नीदेवी एवं पिता श्री जयोनजी ( गौत्र उदेश ) राजपुरोहित के घर आपका जन्म हुआ उस समय उनका नाम रघुराम रखा था । तरूणाई आये इससे पूर्व ही आपने 14-15 वर्ष की बालावस्था में ही संन्यास ले लिया बचपन में सांसारिक से जरा सा भी मोह नहीं किया बचपन में ही एक बार वे गुंटूर ( आंध्रप्रदेश ) भी गए लेकिन वहां भी मन नहीं लगा और वापस आ गए माता पिता की दृष्टि में जब महाराजजी विवाह के योग्य देखने लगे तो अपने पुत्र को दाम्पल ईश्वर आराधना की और तत्पर था । उन्होंने विवाह करना स्वीकार नहीं किया बल्कि उस कन्या को वहिन बना लिया । सूत्र बंधन में बांधने की अभिलाषा करने लगे । उनके लिए एक सुयोग्य कन्या का चयन कर लिया पर उनका मनले चुनरी ओढ़ाकर भाई का फर्ज भी अदा कर दिया । उन्हें समाज व दुनिया की परवाह नहीं थी । उनका मन और मस्तिष्क दोनों रूझान भगवान की तरफ था । मोह माया के बंधन उन्हें अपने मे नहीं जकड़ पाए और वे गुरू की खोज में निकट पड़ें । उन्हें यह ज्ञात था कि गुरू बिना न तो ज्ञान की प्राप्ति होगी और न ही जीवन को सुख मिलेगा । प्रभू तो अपने भक्तों की इच्छा पूर्ण करते ही है । अतः प्रभू की ऐसी कृपा हुई कि उन्हें भादरड़ा में सिद्ध महात्मा श्री श्री 1008 श्री धूड़दास जी महाराज सद्गुरू के रूप में मिल गए । उनके दादा श्री श्री 1008 श्री दूधाधारी जो धूड़दासजी महाराज की उस क्षेत्र में दूर - दूर तक एक संत की ख्याति स्थापित थी । उन्हें सद्गुरू के रूप में पाका रूपदास जी महाराज स्वयं को धन्य मानने लगे और उन्हें स्पष्ट यह आभास होने लगा कि अब जीवन की सार्थकता निश्चित ही उनकी मुट्ठी में आ गई है और उन्होंने भक्ति का वह अलख जगाया कि दुःख सुख , धूप - छांव , गर्म - शीतल के बीच का भेद उन्हें नहीं सताता था । उन्होंने कठोर तपस्या की जिसका पूरे जालोर जिले को लाभ हुआ । महाराज जी ने भादरड़ा में एक भव्य भवन एवं भगवान श्री रामजी का एक सुंदर मन्दिर बनवाया और भादरड़ा गांव में श्री ईश्वरेश्वर मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया , जिसके लाखों लोग दर्शन करते हैं । शिव प्रतिमा है । महाराज जी की कठोर तपस्या व साधना से भादरड़ा की धरा पावन एवं पवित्र हो गई । उनके पास रोग निवारण के शाक्ति थी । असाध्य रोगों का वे इलाज करते थे । उनके आशीर्वाद व कृपा से लोग स्वस्थ हो जाते थे । न हात्मा थे । पूरा जीवन उन्होंने जन कल्याण में ही लगाए रखा । गोपालन एवं गी संवर्धन में उनको बहुत रू बीस मंदिर में सुबह शाम राम स्तुति नियमित करवाते थे और राम नाम की धुन से सारा वातावरण भक्तिमा प्रतीत होने लगता था । दिनांक 17 मई 1994 वैशाख सूदी सारमी मंगलवार को पूज्यवर गोलोक गमन कर गए । वे हम् बीच शरीर नहीं हैं पर आज भी उनके तप व आशीषों की सुगंध भादरड़ा के वातावरण में विद्यमान है आज भी उन समाधी मंदिर पर आकर हजारों भक्त खुदको लाभान्वित करते है । और अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करते है । वर्णन श्री राम स्तु 20

सुरेश राजपुरोहित ईटवाया

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