Note यह पुरी कहानी नही है । पुरी कहानी के लिए ।हितेशजी द्रारा लिखित राजपुरोहित नामा काली किताब । जरुर पढे ।
कहते है कि कोई पन्ना मन से लिखना हो तो मिनिटो में लिखा जा सकता है, पर वही पन्ना अगर सच के साथ लिखना हो तो सालो साल लग जाते है। बहुत से घर, बाप, माँ, बेटी, आदमी दर्द की जंजीरों से निकले है क्योंकि हर घर एक कहानी लिए बैठा है।
इतने बड़े और विस्तृत समाज की हर गुजरी घटना लिखना तो मुमकिन नही है पर #अधिकतर दर्द , बाते ,#चीख, भविष्यवाणियां ऐसी है जो आपको जाननी जरूरी है।*
किताब की प्री. आर्डर बुकिंग 2 व्हाट्सएप No. पर शुरू है।
1) 7073366730
2) 637838672
मैं हितेश राजपुरोहित सांथू
( पोलिस स्टेशन में हो रही बातचीत )
सन् 1977
इंस्पेक्टर : - नाम क्या है , उसका
हवलदार : - साब , गुमानसिंह
इंस्पेक्टर : - गाँव कौनसा है
हवलदार - साब , गुडानाल
इंस्पेक्टर - जाति क्या है?
। हवलदार : साब , राजपुरोहित
इंस्पेक्टर - जाओ , गिरफ्तार करके लाओ गुमानसिंह राजपुरोहित को ।
यह सनते ही पोलिस स्टेशन में सन्नाटा छा गया , सब को सांप सुग गया ।
जिन पलिस वालों को बोला गया कि गुमानसिंह को पकड़ कर ले उनके पैर कंपकपाने लगे ।
दिल तेजी से धड़कने लगा । पैर पीछे की तरफ जाने लगे ।
पिछली बार जो इंस्पेक्टर गुमानसिंह को गिरफ्तार करने उनके घर गया था , उसके हाथ गुमानसिंह ने काट दिए थे ।
सन् 1977
इंस्पेक्टर : - नाम क्या है , उसका
हवलदार : - साब , गुमानसिंह
इंस्पेक्टर : - गाँव कौनसा है
हवलदार - साब , गुडानाल
इंस्पेक्टर - जाति क्या है?
। हवलदार : साब , राजपुरोहित
इंस्पेक्टर - जाओ , गिरफ्तार करके लाओ गुमानसिंह राजपुरोहित को ।
यह सनते ही पोलिस स्टेशन में सन्नाटा छा गया , सब को सांप सुग गया ।
जिन पलिस वालों को बोला गया कि गुमानसिंह को पकड़ कर ले उनके पैर कंपकपाने लगे ।
दिल तेजी से धड़कने लगा । पैर पीछे की तरफ जाने लगे ।
पिछली बार जो इंस्पेक्टर गुमानसिंह को गिरफ्तार करने उनके घर गया था , उसके हाथ गुमानसिंह ने काट दिए थे ।
जिसे दुनियाँ डाक् गुमानसिंह कहती है उसका नाम ही काफी था आसपास के गाँवों में खौफ के लिए ।
छोटे - मोटे चोर और डाक जो इनके आस - पास प्रान्त में रहते थे वो गुमानसिंह राजपुरोहित से डर कर दूर दराज चले गए ।
गुमानसिंह उस वक्त भी बडा दयाल लंबे कद और हसीन चेहरे वाला इंसान था , वो भोला भी था , तो शातिर भी था ।
छोटे - मोटे चोर और डाक जो इनके आस - पास प्रान्त में रहते थे वो गुमानसिंह राजपुरोहित से डर कर दूर दराज चले गए ।
गुमानसिंह उस वक्त भी बडा दयाल लंबे कद और हसीन चेहरे वाला इंसान था , वो भोला भी था , तो शातिर भी था ।
( आओ सुनते है डाकू गुमानसिंह नवसारी ( गुजरात ) की कहानी )
1977 , गुजरात के नवसारी में अपने पापा को मिलने पहुँच गुमानसिंह राजपुरोहित को नवसारी पसंद आया । वो अपने पापा का हाथ बटाने ।
वो कामधारी लडका था । धीरे - धीरे गमान की दोस्ती कछ ऐसे लड़को के साथ हुई जो छोटी - मोटी चोरियां करते थे ।
एक दिन उनके साथी । किसी चोरी में पकड़े गए तो अपने बचाव के लिए उन लड़कों ने । गुमानसिंह का नाम लिया , वो सारे लड़के बच गए । अब दुनिया की नजरों में गुमान चोर हो गया था । गुमानसिंह को देखकर लोग उन्हें चोर चोरटो , कहने । यह सारी बातें गुमान को चुभने लगी थी ।
वो कामधारी लडका था । धीरे - धीरे गमान की दोस्ती कछ ऐसे लड़को के साथ हुई जो छोटी - मोटी चोरियां करते थे ।
एक दिन उनके साथी । किसी चोरी में पकड़े गए तो अपने बचाव के लिए उन लड़कों ने । गुमानसिंह का नाम लिया , वो सारे लड़के बच गए । अब दुनिया की नजरों में गुमान चोर हो गया था । गुमानसिंह को देखकर लोग उन्हें चोर चोरटो , कहने । यह सारी बातें गुमान को चुभने लगी थी ।
एक बार फिर कहीं पर चोरी हुई , सारा इल्जाम गुमान पर आ गया ।
गुमान को लगने लगा कि दुनिया ने उसे नया नाम दे दिया है चोर होने का ।
इसीलिए गुमान ने पहली चोरी करने की ठान ली और पहली चोरी उसके घर में की । जो गुमान को चोर - चोर ' कहता था ।
गुमान की यह पहली चोरी थी । जो सिर्फ बदले के लिए की थी । |
इसी सब के बिच गुमान कई तानों में फस गया ,
दुनिया गुमान को तानों पर ताने देने लगी थी
और यहा से शुरू होती है , गुमान के ‘ डाकू गुमानसिंह ' बनने की दुनियाँ .
गुमान को लगने लगा कि दुनिया ने उसे नया नाम दे दिया है चोर होने का ।
इसीलिए गुमान ने पहली चोरी करने की ठान ली और पहली चोरी उसके घर में की । जो गुमान को चोर - चोर ' कहता था ।
गुमान की यह पहली चोरी थी । जो सिर्फ बदले के लिए की थी । |
इसी सब के बिच गुमान कई तानों में फस गया ,
दुनिया गुमान को तानों पर ताने देने लगी थी
और यहा से शुरू होती है , गुमान के ‘ डाकू गुमानसिंह ' बनने की दुनियाँ .
. . . . सूरत ( गुजरात ) 1980 में डाकू गुमानसिंह सूरत चले गए , वहा बैग चोरी और छोटी - मोटी चोरियों को अंजाम देने लगे ।
पहली बार गुमानसिंह को पोलिस ने पकड़ लिया । फिर जेल की दुनियाँ में डाकू गुमानसिंह को 18 दिन सलाखों के पीछे रखा ।
इन्हीं 18 दिन में गुमानसिंह की पहले से जेल में कैद ' गिरधारी भाईलाल पटेल ' से दोस्ती हो गई ।
दोनों रिहा होने के बाद पोलिस रटेशन के बाहर मिले ।
इन्हीं 18 दिन में गुमानसिंह की पहले से जेल में कैद ' गिरधारी भाईलाल पटेल ' से दोस्ती हो गई ।
दोनों रिहा होने के बाद पोलिस रटेशन के बाहर मिले ।
। | अब गुमानसिंह और गिरधारी भाईलाल पटेल दोनों शोले के जय और वीरू जैसे हो गए थे ।
एक और चोरी अंजाम दे दी गई ( माधवपुरा मोरीघासी वाडी ) से कुल 92 लाख के कीमती हीरों की चोरी । ।
एक और चोरी अंजाम दे दी गई ( माधवपुरा मोरीघासी वाडी ) से कुल 92 लाख के कीमती हीरों की चोरी । ।
उन हीरों को ( काठीवाडी ) में बेच दिया गया ।
लेकिन पोलिस ने हाथों के निशान ( Finger Print ) से उन्हें काटर गाँव ) चारभुजा पर एक ढाबे पर पकड़ लिया ।
लेकिन पोलिस ने हाथों के निशान ( Finger Print ) से उन्हें काटर गाँव ) चारभुजा पर एक ढाबे पर पकड़ लिया ।
वो दोनों 18 महिनों तक जेल में रहे । 18 महिनों बाद उन्हें बेल मिल गई , और वो बाहर आ गए ,
लेकिन अब मेंहदी का रंग उनके हाथों से जाने वाला नहीं था ।
हीरों की चमकती रोशनी ने उन्हें दुबारा एक और चोरी । करने पर मजबूर कर दिया ।
सूरत ( चौक बाजार ) चौक बाजार से 25 लाख के हीरों की चोरी की और उन हीरों को बाजार में बेच दिया गया । 9 लाख की रकम उनको मिली और वो रकम लेकर गुमानसिंह राजपुरोहित पहुँच गए मायानगरी ( मुंबई )
लेकिन अब मेंहदी का रंग उनके हाथों से जाने वाला नहीं था ।
हीरों की चमकती रोशनी ने उन्हें दुबारा एक और चोरी । करने पर मजबूर कर दिया ।
सूरत ( चौक बाजार ) चौक बाजार से 25 लाख के हीरों की चोरी की और उन हीरों को बाजार में बेच दिया गया । 9 लाख की रकम उनको मिली और वो रकम लेकर गुमानसिंह राजपुरोहित पहुँच गए मायानगरी ( मुंबई )
गिरधारी भाई लाल पटेल लोगों की नई पुरानी गाड़िया उठा लेते और राजस्थान भेज देते ।
उन राजस्थान भेजी हुई गाडियों को गुमानसिंह वेध दिया करते थे ।
10 साल तक उनका यह काम जारी रहा ।
10 साल में तकरीबन 200 से 300 तक गाड़ियों को गुजरात से राजस्थान में बेचा गया था ।
उन राजस्थान भेजी हुई गाडियों को गुमानसिंह वेध दिया करते थे ।
10 साल तक उनका यह काम जारी रहा ।
10 साल में तकरीबन 200 से 300 तक गाड़ियों को गुजरात से राजस्थान में बेचा गया था ।
आनंद ( गुजरात ) |
रात के 11 . 35 बजे सन् 1996 - 1998 वसन भाई पटेल की आंगडिया ऑफिस से 3 करोड़ रूपयों को 4 बैगों में भरा गया ।.
यह गुमानसिंह की जिदंगी की सबसे बड़ी चोरी थी ।
इन बैगों में पैसों को दबा - दबा कर भर दिया और उनमें से 2 पैसों से भरे बैग गुमानसिंह और 2 बैग गिरधारी भाईलाल पटेल दुसरे मंजिल की छत पर लेकर पहुंचे । |
पलक झपकते ही पुलिस की दो जीप आ पहुँची और लाउड स्पीकर में जोर से ऐलान हुआ . . . . . । " गुमानसिंह . . . सरेण्डर कर दो . . . तु आज बच नहीं सकता ।
यह गुमानसिंह की जिदंगी की सबसे बड़ी चोरी थी ।
इन बैगों में पैसों को दबा - दबा कर भर दिया और उनमें से 2 पैसों से भरे बैग गुमानसिंह और 2 बैग गिरधारी भाईलाल पटेल दुसरे मंजिल की छत पर लेकर पहुंचे । |
पलक झपकते ही पुलिस की दो जीप आ पहुँची और लाउड स्पीकर में जोर से ऐलान हुआ . . . . . । " गुमानसिंह . . . सरेण्डर कर दो . . . तु आज बच नहीं सकता ।
” उस बिल्डिंग के पीछे थियेटर था ( गोपाल टॉकिज ) गुमानसिंह ने अपने हाथ की घड़ी को देखा तब उसमें 11 . 55 बज चुके थे ।
गुमानसिंह जानते थे कि ठीक 12 बजे थियेटर छुटेगा , और कई सारे लोग उसमें से निकलेंगे , इसी बिच वो यहां से चकमा देकर भाग सकता है ।
लेकिन भगवान को यह मंजूर नहीं था । पुलिस स्पीकर में चिल्ला रही थी , दूसरी तरफ 12 बज चुके थे । गुमानसिंह और गिरधारी भाई दूसरी मंजिल से पैसों से भरे चार बैगों के साथ कूद पड़े सीधे सड़क पर , लेकिन गिरते ही गिरधारी भाई का पैर क्रेक हो गया ।
वो दर्द से चिल्ला पड़े ।
गुमानसिंह के दाएँ कंधे की हड्डी टूट गई , गुमानसिंह फिर भी खड़े हुए और गिरधारी भाई को खड़ा करने में मदद करने लगे , पर नाकामयाब हुए ।
यह देख गिरधारी भाई बोले . . . . . " गुमान तु बैग लेकर भाग जा . . . . . मेरा भी बैग लेकर भाग जा . . . . . तुझे दुर्गा माँ की कसम ।
” । गुमानसिंह दिल का और दोस्ती का पक्का था । अपना यार नहीं छोड़ सकता था ।
गुमानसिंह अपनी लाल हो चुकी आँखों के साथ बोले
गुमानसिंह जानते थे कि ठीक 12 बजे थियेटर छुटेगा , और कई सारे लोग उसमें से निकलेंगे , इसी बिच वो यहां से चकमा देकर भाग सकता है ।
लेकिन भगवान को यह मंजूर नहीं था । पुलिस स्पीकर में चिल्ला रही थी , दूसरी तरफ 12 बज चुके थे । गुमानसिंह और गिरधारी भाई दूसरी मंजिल से पैसों से भरे चार बैगों के साथ कूद पड़े सीधे सड़क पर , लेकिन गिरते ही गिरधारी भाई का पैर क्रेक हो गया ।
वो दर्द से चिल्ला पड़े ।
गुमानसिंह के दाएँ कंधे की हड्डी टूट गई , गुमानसिंह फिर भी खड़े हुए और गिरधारी भाई को खड़ा करने में मदद करने लगे , पर नाकामयाब हुए ।
यह देख गिरधारी भाई बोले . . . . . " गुमान तु बैग लेकर भाग जा . . . . . मेरा भी बैग लेकर भाग जा . . . . . तुझे दुर्गा माँ की कसम ।
” । गुमानसिंह दिल का और दोस्ती का पक्का था । अपना यार नहीं छोड़ सकता था ।
गुमानसिंह अपनी लाल हो चुकी आँखों के साथ बोले
गुमान तेरे सिवा नहीं जाएगा . . | दुर्गा माँ की सौगध ।
” । गुमानसिंह को पता था कि अब पुलिस उनहें पकड़ लेगी और पैसे सरकारी खजाने में कैद हो जायेंगे , इसलिए जैसे ही सारी भीड़ थियेटर से बाहर निकली और दूसरी तरफ से पुलिस भी आने लगी तो गुमानसिंह ने तुरन्त चारों बैगों की चैन खोली और सारा पैसा सड़क पर बिखेर दिया . . . . . आणंद शहर में आज पैसों की बरसात हो गई , सारे लोग पैसों पर टूट पड़े । । ( हितेश राजपुरोहित के आणंद शहर के सर्वे में यह पता चला कि जिन लोगों को पैसे मिले थे वो गरीबी की आखिरी सीमा पर थे ।
उनमें से एक आदमी चंपक भाई भी था । उनका कहना है कि उनके साथ में भी लगभग 50 , 000 रूपये आए थे ।
इन रुपयों से ही मैंने अपनी ढोकले और फाफडे की । दुकान खोली थी ।
) सड़क पर उन बिखरे पड़े पैसों को जब गुमानसिंह ने लोगों को लेता देखा तो उनके मन में खुशी की लहर उमड़ पड़ी थी । ।
पुलिस ने जब यह नजारा देखा तो पुलिस सीधे गुमानसिंह के पास पहुँची , तो उन पुलिस वालों के मुंह से एक ही वाक्य निकला . . . . . वाह रे गुमानसिंह शाबास . . . दोस्ती का यह रूप आज देखने को मिला । शाबास । ”
इन दोनों को 2 साल तक जेल में रखा गया ।
आज भी लोग कहते है . . . . कि आणंद में पैसों की बरसात गुमानसिंह ही कर सका । ।
उनमें से एक आदमी चंपक भाई भी था । उनका कहना है कि उनके साथ में भी लगभग 50 , 000 रूपये आए थे ।
इन रुपयों से ही मैंने अपनी ढोकले और फाफडे की । दुकान खोली थी ।
) सड़क पर उन बिखरे पड़े पैसों को जब गुमानसिंह ने लोगों को लेता देखा तो उनके मन में खुशी की लहर उमड़ पड़ी थी । ।
पुलिस ने जब यह नजारा देखा तो पुलिस सीधे गुमानसिंह के पास पहुँची , तो उन पुलिस वालों के मुंह से एक ही वाक्य निकला . . . . . वाह रे गुमानसिंह शाबास . . . दोस्ती का यह रूप आज देखने को मिला । शाबास । ”
इन दोनों को 2 साल तक जेल में रखा गया ।
आज भी लोग कहते है . . . . कि आणंद में पैसों की बरसात गुमानसिंह ही कर सका । ।
सन् 1999 , सूरत ( गुजरात ) गिरधारीभाई लाल पटेल की मौत हो गई ।
जय ने वीरू को खो दिया था ।
आज भी सूरत रेलवे स्टेशन पर उनका एक छोटा सा मंदिर बनाया हुआ ।
सन् 2000 बरोड़ा ( गुजरात ) गुमानसिंह गिरधारीभाई पटेल की मौत को कभी नहीं भूले । ।
उन्होंने फिर कभी चोरी ना करने की अपने दोस्त को दिए वचन की गठ – बाँध ली थी । |
भंवरानी गाँव के एक राजपुरोहित व्यक्ति के साथ उन्होंने बैग की एक फैक्ट्री खोली , साईनाथ कॉम्पलेक्स ( Sainath Complex ) , जुबली बाग के पास , करेली बाग में . . . . . सब ठीक चल रहा था ।
जय ने वीरू को खो दिया था ।
आज भी सूरत रेलवे स्टेशन पर उनका एक छोटा सा मंदिर बनाया हुआ ।
सन् 2000 बरोड़ा ( गुजरात ) गुमानसिंह गिरधारीभाई पटेल की मौत को कभी नहीं भूले । ।
उन्होंने फिर कभी चोरी ना करने की अपने दोस्त को दिए वचन की गठ – बाँध ली थी । |
भंवरानी गाँव के एक राजपुरोहित व्यक्ति के साथ उन्होंने बैग की एक फैक्ट्री खोली , साईनाथ कॉम्पलेक्स ( Sainath Complex ) , जुबली बाग के पास , करेली बाग में . . . . . सब ठीक चल रहा था ।
लेकिन एक दिन ( बरोड़ा सिटी फाईनेंस ) बैंक के तीन कर्मचारी लोन के पैसे लेने फैक्ट्री में आ गए । गुमानसिंह उस वक्त खाना खा रहे थे ।
बैंक कर्मचारी ने आपत्तिजनक शब्दों में भला बुरा बोला , फिर भी गुमानसिंह ने उन्हें समझाया लेकिन वो नहीं माने , और तभी अचानक से एक कर्मचारी ने गुमानसिंह की गर्दन पकड़ ली . . . ।
गुमानसिंह का सिर खुल सा गया , और सीना हवा से भर गया ।
गुमानसिंह अपने पुराने अंदाज में इस पल लौट चुके थे । उसने उस कर्मचारी को पकड़ कर , घुमा कर फेंक दिया ।
यह देख दूसरा कर्मचारी डर कर भाग पड़े ।
गुमानसिंह ने उसे बुरी तरह से मारा . . . . . . उस आदमी पर 23 घाव पड़े थे , गुमानसिंह के 23 मुक्कों से । ।
24 घंटों बाद उसे होश आया था ।
ठीक 1 महिने तक वो आई . सी . यू . में भर्ती रहा था ।
बैंक कर्मचारी ने आपत्तिजनक शब्दों में भला बुरा बोला , फिर भी गुमानसिंह ने उन्हें समझाया लेकिन वो नहीं माने , और तभी अचानक से एक कर्मचारी ने गुमानसिंह की गर्दन पकड़ ली . . . ।
गुमानसिंह का सिर खुल सा गया , और सीना हवा से भर गया ।
गुमानसिंह अपने पुराने अंदाज में इस पल लौट चुके थे । उसने उस कर्मचारी को पकड़ कर , घुमा कर फेंक दिया ।
यह देख दूसरा कर्मचारी डर कर भाग पड़े ।
गुमानसिंह ने उसे बुरी तरह से मारा . . . . . . उस आदमी पर 23 घाव पड़े थे , गुमानसिंह के 23 मुक्कों से । ।
24 घंटों बाद उसे होश आया था ।
ठीक 1 महिने तक वो आई . सी . यू . में भर्ती रहा था ।
ठीक होने के बाद गुजरात छोड़कर भाग चला गया था । गुमानसिंह उसे मारना नहीं चाहता था ।
उसे मारने का दर्द भी गुमानसिंह को था । हालांकि उन्होंने बहुत सारे लोगों को धोया था ,
लेकिन उन्हें उसे मारने का अफसोस बहुत हुआ । अफसोस उन्हें इस बात का ज्यादा इसलिए था क्योंकि उन्होंने अब तक यह काम छोड़ दिया था ।
वो लगभग 26 दिनों तक जेल में रहे , रिहा होते ही उन्हों 2 लाख रूपये उस कर्मचारी के घर भिजवा दिए , जिसे उन्होंने मारा था ।
डाकू गुमानसिंह की गुजरात की कहानी यही पर समाप्त होती हैं ।
और वो हमेशा के लिए राजस्थान आ गए । सन् 2008 , 23 जून गाँव गुडानाल गाँव के चौराएँ पर बने एक मंदिर में R . B . महाराज कही से आ पहुँचा था । वो महाराज गांव वालों से डर कर मंदिर में रहने लगा था । गुमानसिंह भी उस महाराज के साथ मंदिर और भगवान की शरण में चले ।
10 सालों से डाकू गुमानसिंह इसी मंदिर में R . B . महाराज के साथ सेवा दे रहे हैं ।
आज गुमानसिंह का समय खराब है ।
अपने पास आए कई लाखों रूपयों को जो गरीबों की मदद करके उन्हें जिंदगियाँ देने वाला गुमान आज गुमनाम सा हो गया है । |
गुमानसिंह ने जिन लोगों की मदद की वो ऐशो मासूम की जिदंगी जी रहे |
आज डाकू गुमानसिंह जमीन पर सोते है । वो आज ( 2018 ) 54 साल के है ।
वो शरीर से बहुत ही कमजोर हो गए है , लेकिन आज भी उनका कलेजा वही है जो गुजरात के आणंद में था ।
काली किताब की यह काली कहानी है जो यह बयां कर रही है कि राजपुरोहित समाज बहुत बड़ा है , अमीरों की कोई कमी नहीं है ,
सब अपनी जिदंगी रुतबे से जी रहे है , पर अफसोस राजपुरोहित समाज ने कभी गुमानसिंह की मदद करने की नहीं सोची , और अगर सोचेगी तो कहेगी । |
" वो तो डाकू है ।
डाकू गुमानसिंह । ” ( इस कहानी में लिखी गई बाते डाकू गुमानसिंह की | अनुमति से और रजा से लिखी गई है । )
याद रखना . . . । जितने लोगों को डाकू गुमानसिंह ने लुटा . . . . . . . . . उससे 10 गुणा ज्यादा लोगों ने डाकू गुमानसिंह को लुटा । इसलिए वो आज मंदिर में रहते है जहां वो भक्ति , आराधना , ध्यान और दो समय की रोटी के साथ जी रहे हैं और यही उनकी दुनिया है अब । । बाकी सब मोहमाया . . . . दुनियाँ उड़ा ले गई यह थी गुडानाल के गुमानसिंह की कहानी । । हितेश राजपुरोहित की जुबानी । । होर हो जेई सरमन । . . aas . नमः शिवाय वर्तमान में इस RB बाबा के मंदिर में | गुमानसिंहजी सेवा करते हैं ।
ओर एशी समाज के रोचक जानकारी के राजपुरोहित नामा एक काली किताब जरुर मगवाये ।
कि हर घर एक कहानी लिए बैठा है।
इतने बड़े और विस्तृत समाज की हर गुजरी घटना लिखना तो मुमकिन नही है पर #अधिकतर दर्द , बाते ,#चीख, भविष्यवाणियां ऐसी है जो आपको जाननी जरूरी है।*
किताब की प्री. आर्डर बुकिंग 2 व्हाट्सएप No. पर शुरू है।
1) 7073366730
2) 637838672
मैं हितेश राजपुरोहित सांथू
जय रघुनाथ जी री सा🙏
उसे मारने का दर्द भी गुमानसिंह को था । हालांकि उन्होंने बहुत सारे लोगों को धोया था ,
लेकिन उन्हें उसे मारने का अफसोस बहुत हुआ । अफसोस उन्हें इस बात का ज्यादा इसलिए था क्योंकि उन्होंने अब तक यह काम छोड़ दिया था ।
वो लगभग 26 दिनों तक जेल में रहे , रिहा होते ही उन्हों 2 लाख रूपये उस कर्मचारी के घर भिजवा दिए , जिसे उन्होंने मारा था ।
डाकू गुमानसिंह की गुजरात की कहानी यही पर समाप्त होती हैं ।
और वो हमेशा के लिए राजस्थान आ गए । सन् 2008 , 23 जून गाँव गुडानाल गाँव के चौराएँ पर बने एक मंदिर में R . B . महाराज कही से आ पहुँचा था । वो महाराज गांव वालों से डर कर मंदिर में रहने लगा था । गुमानसिंह भी उस महाराज के साथ मंदिर और भगवान की शरण में चले ।
10 सालों से डाकू गुमानसिंह इसी मंदिर में R . B . महाराज के साथ सेवा दे रहे हैं ।
आज गुमानसिंह का समय खराब है ।
अपने पास आए कई लाखों रूपयों को जो गरीबों की मदद करके उन्हें जिंदगियाँ देने वाला गुमान आज गुमनाम सा हो गया है । |
गुमानसिंह ने जिन लोगों की मदद की वो ऐशो मासूम की जिदंगी जी रहे |
आज डाकू गुमानसिंह जमीन पर सोते है । वो आज ( 2018 ) 54 साल के है ।
वो शरीर से बहुत ही कमजोर हो गए है , लेकिन आज भी उनका कलेजा वही है जो गुजरात के आणंद में था ।
काली किताब की यह काली कहानी है जो यह बयां कर रही है कि राजपुरोहित समाज बहुत बड़ा है , अमीरों की कोई कमी नहीं है ,
सब अपनी जिदंगी रुतबे से जी रहे है , पर अफसोस राजपुरोहित समाज ने कभी गुमानसिंह की मदद करने की नहीं सोची , और अगर सोचेगी तो कहेगी । |
" वो तो डाकू है ।
डाकू गुमानसिंह । ” ( इस कहानी में लिखी गई बाते डाकू गुमानसिंह की | अनुमति से और रजा से लिखी गई है । )
याद रखना . . . । जितने लोगों को डाकू गुमानसिंह ने लुटा . . . . . . . . . उससे 10 गुणा ज्यादा लोगों ने डाकू गुमानसिंह को लुटा । इसलिए वो आज मंदिर में रहते है जहां वो भक्ति , आराधना , ध्यान और दो समय की रोटी के साथ जी रहे हैं और यही उनकी दुनिया है अब । । बाकी सब मोहमाया . . . . दुनियाँ उड़ा ले गई यह थी गुडानाल के गुमानसिंह की कहानी । । हितेश राजपुरोहित की जुबानी । । होर हो जेई सरमन । . . aas . नमः शिवाय वर्तमान में इस RB बाबा के मंदिर में | गुमानसिंहजी सेवा करते हैं ।
ओर एशी समाज के रोचक जानकारी के राजपुरोहित नामा एक काली किताब जरुर मगवाये ।
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जय रघुनाथ जी री सा🙏