श्री हरि सिंह राजपुरोहित झाबरा

श्री हरि सिंह राजपुरोहित
झाबरा

स्व. श्री हरि सिंह राजपुरोहित , जिन्होने वन्यजीब हिरणों के प्राणों
की रक्षार्थ सहर्ष अपने प्राणों का बलिदान दे दिया । धन्य है इनके
माता - पिता और धन्य हैं मरूधरा जिन्होने इस महान बलिदानी की
जन्म देकर अहिंसा परमोधर्म और प्राणी मात्र की रक्षा जैसे संस्कारों
से आत्मसात किया

राजस्थान की धरती वीर वसुन्धरा कही जाती है । इसके कण - कण
में त्याग बलिदान , शर्थि , माता करूणा , मसनब सेवा की अनगिनत
गाथाएँ आज भी बड़ी श्रद्धाभाव जीर है ।

इस इतिहास पुरुष का जन्म के जैसलमेर जिला अन्तर्गत पोकरण
तहसील के डूझाबर गावं में 1 सितम्बर 1978 को हुआ । इनके
पिता श्री राधाकिशन सिंह गांव में खेती का कार्य करते है । इनकी
माता का नाम श्रीमती जतन कवर है । बाल्यकाल से ही जाँ सेवा एव
वन्य जीवों के प्रति स्नेह भाव इनके जीवन का ध्येय । परिवार की
आधिक स्थिति सामान्य ही थी । इन्होंने 8 सब पढाई करने के बाद ,
पिता के कायों में हाथ बटाना शुरु कर दिया ।

खोती बाड़ी के साथ गौ सेवा संरक्षण तथा वन्य जीवों की सेवा इनके
दिनचर्या के महत्वपूर्ण कार्य थे । रेगिस्थान इलाका जहां पानी की
नितान्त कमी रहती है वहां अपने टेक्टर दवारा पानी के कर लाकर
नावों और वन्य जीवों की प्यास बुझाता था । कुछ वर्ष पूर्व
कानोड़िया पुराताना निवासी ग्राम सिह सेवा की सुपुत्री नेनू कवर के
साथ इनकी शादी हो गई । दोनों ही परिवार में खुशियों का बगीया
महक उठी । शादी के बाद भी श्री हरि सिह की दिनचयाँ और
व्यवहार में काई अन्तर नही जाया जा सेवा वन्य जीवों के प्रति दया


व्यवहार में काई अन्तर नही जाया जा सेवा वन्य जीवों के प्रति दया
भाव, पर्यावरण संरक्षक खेजड़ी , बैर , नीम के पेड़ लगाकर उनका
पोषण करना साथ जब भी समय मिलता तब गांव के युवाओं को
अक्सर प्रेरणा देते थे कि गौ सेवा और वन्य जीवों की रक्षा करना
हमारा कर्तव्य हैं । हरि सिंह के 4 संतान जिनमें 2 पुत्र एवं 2 पुत्री है ।
20 अप्रैल 2004 प्रति दिन की भांति इस दिन भी सांय 7 बजे के
करीब श्री हरि सिंह राजपरोहित अपने टेक्टर से पानी का टैंकर लाने
हेतु घर से निकले । गांव के बाहर ( कांकड में ) इनको अचानक
गोली चलने की आवाज सुनाई पड़ी तो इन्हें इस बात का एहसास हो
गया कि कोई शिकारी है जो वन्यजीवों का शिकार कर रहा है । हरि
सिंह ने उसका पिछा किया तो देखा कि कुछ लोग हिरणों का शिकार
करने के लिए सशस्त्र खड़े थे । बों लोग उसी हौज के भील जाति के
थे जिनमें प्रमुख शिकारी ओमा राम भील था । हरि सिंह ने इनकी
पहचान लिया और शिकार करने से मना किया । हरि सिंह ने कहा
इन निरपराध अमुक जीव की हत्या मत करो , मगर शिकायत न
उनकी सुनी जननी कर हरि सिंह को कहा कि तुम यहा से चले जाओ
वरना हिरण से पहले तुम्हें गोली मार देंगे

अदभ्य साहस के धनी हरि सिंह राजपुरोहित अपने प्राणों की परवाह
किये बिना शिकारियों से भीड़ गया । इसी समय ओमा राम भील ने
हरि सिंह राजपुरोहित को गोली मार दी । गोली लगने के बाद भी
खून से लथपथ हार सिंह ने शिकारी से बंदूक और मत हिरण को
छीन लिया | बंदूक की गोली से घायल हुए हरी सिंह राजपुरोहित को
पोकरण अस्पताल ले जाया गया । जब तक वे अस्पताल पहुंचे तब
तक बहुत सारा खून बह चुका था । और अन्तत : यह महान
कर्मयोगी वीर एवं . वन्य जीव प्रेमी नश्वर संसार को छोडकर चला
गया । हालांकि शिकारी एक हिरण का शिकार कर चूका थामना स्व



. श्री हरि सिंह राजपुरोहित की आत्मा इस बात से प्रसन्न थी की आज न जाने कितने हिरणों के प्राण बचा गए । हे अमर वीर ।
तुम्हारा यह बलिदान विश्व वन्दनीय हैं । आज समाज ही नहीं बल्कि
सम्पूर्ण मानव जाति. प्रत्येक प्राणी मुम्हारी इस शहादत को नमन
करते

सुरेश राजपुरोहित ईटवाया

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